भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क़दम-क़दम पर ख़ूब सँभलने वाले हम / नवीन सी. चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


क़दम-क़दम पर ख़ूब सँभलने वाले हम
अक्सर ठगे गये हैं, छलने वाले हम

बूँदों की मानिन्द टपकते रहते हैं
फ़व्वारों की तरह उछलने वाले हम

धनक हमारे आगे पानी भरती है
गिरगिट जैसे रंग बदलने वाले हम

छेड़ न कृत्रिम बारिश करने वालों को
अड़े, तो जम सकते हैं, गलने वाले हम

फ़लक दिखाने वाले ख़ुद भी उड़ के दिखा
बातों से ही नहीं बहलने वाले हम