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क़दम बढ़ेंगे गिर-गिरके उठेंगे उठ-उठके चलेंगे आ साथी ! / कांतिमोहन 'सोज़'
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क़दम बढ़ेंगे गिर-गिरके उठेंगे उठ-उठके चलेंगे आ साथी !
अब न सहेंगे अब चुप न रहेंगे सर तानके चलेंगे आ साथी !
लगन लगी है ऐसी अगन जगी है बढ़ने का ज़माना आया है
थिरक उठा है मन किरन-सरीखा चढ़ने का ज़माना आया है
कोट चढ़ेंगे परकोट चढ़ेंगे परबत पे चढ़ेंगे आ साथी !
हम मतवाले हम हिम्मतवाले हमें बढ़ने से रोकेगा कौन यहाँ
धूम-धुँआरे कारे घन कजरारे हमें खिलने से रोकेगा कौन यहाँ
उमड़-घुमड़ घनघोर गरजेंगे धारासार बरसेंगे आ साथी !
सहम उठेंगे खल सिहर उठेंगे उन्हें मिटने रोकेगा कौन यहाँ
बिजली हमारी बड़ी तेज़ है कटारी उसे छाती पे रोकेगा कौन यहाँ
पाँव उखड़ेंगे रिपु भाग चलेंगे हमीं जीतके रहेंगे आ साथी !!