भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क़दम / राम नाथ बेख़बर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दिनों बाद
शाम की सैर पर निकला

और सहसा पाया
धीरे-धीरे
मेरे क़दम
उधर ही बढ़ रहे थे

जिधर से ख़ुशबू भरी हवाएँ
तेज कदमों से चली आ रही थीं।