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क़बूलनामा / लुईज़ा ग्लुक / विनोद दास

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यह कहना कि मुझे डर नहीं लगता
सही नहीं होगा
हर किसी की तरह मुझे भी बीमारी, अपमान से
डर लगता हैं
अगर्चे मैंने उसे छिपाना सीख लिया है

पूर्णता से अपने को बचाने के लिए
सभी ख़ुशियाँ मुक़द्दर के गुस्से को न्योता देती हैं
वे बहने हैं — बर्बर
आख़िरकार उनमें ईर्ष्या के सिवा कोई सम्वेदना नहीं होती

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास