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क़ब्र पर इंसानियत की आशियाने हो गए / समीर परिमल

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क़ब्र पर इंसानियत की आशियाने हो गए
लोग छोटे हो गए, ऊँचे घराने हो गए

मर चुके थे यूँ तो हम इक बेरुख़ी से आपकी
ज़लज़ले, सैलाब और तूफ़ां बहाने हो गए

चल झटक दे जह्न से अब शायरी का ये जुनूँ
देख दिलवाले भी अब कितने सयाने हो गए

मुद्दतों पहले लगाया था इसे दीवार पर
आईना वो ही रहा पर हम पुराने हो गए

आसमां मुट्ठी में बस आने ही वाला था मगर
चंद अपनों की सियासत के निशाने हो गए