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क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना / ग़ालिब
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क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
तअज्जुब से वो बोला यूँ भी होता है ज़माने में
दिल-ए-नाज़ुक पे उस के रहम आता है मुझे ‘ग़ालिब’
न कर सरमर्ग उस काफ़िर को उल्फ़त आज़माने में