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क़रार है तो कभी / हरिवंश प्रभात

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क़रार है तो कभी पल में बेक़रार का नाम।
ये ज़िन्दगी है हक़ीक़त में इन्तज़ार का नाम।

वह दूसरे ही को बस आइना दिखाता है,
समझता इसको भी नादान है सिंगार का नाम।

छुपा के ग़म को हमेशा जो मुस्कुराता है,
बना के रखता है मौसम भी ख़ुशगवार का नाम।

अपने जज़्बात से मौसम को बदल देता है,
ख़िज़ाँ को देता है हरदम ही वह बहार का नाम।

पिघल ही जाता है यह देश का अनुशासन,
अगर जो जुर्म में आता है मालदार का नाम।

उसे मैं देख के पहचानता नहीं चेहरा,
मगर वह लिखता रहा पत्र में भी प्यार का नाम।

वह बेवफ़ा उसे मझधार में ही छोड़ा था,
पहुँच के लिखता है साहिल पर अपने यार का नाम।