भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क़लमकारों की नगरी है कलाकारों की बस्ती है / अनु जसरोटिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क़लमकारों की नगरी है कलाकारों की बस्ती है
वो बस्ती जिस में हम रहते हैं अवतारों की बस्ती है

भला हम जाहिलों को कौन इस बस्ती में पूछे गा
ख़ुदा के फ़ज़्ल से ये तो समझदारों की बस्ती है

ये बस्ती वो है जिस में आयें तो फ़नकार बिक जायें
ये ज़रदारों की बस्ती है, ख़रीदारों की बस्ती है

इन्हीं के दम से फ़स्लें हैं ये मिहनत के फ़रिशते हैं
यहां से बा-अदब गुज़रो ज़मींदारों की बस्ती है

वो बस्ती जिस में हम रहते हैं मामूली नहीं बस्ती
वो गुलज़ारों की बस्ती है वो नज्ज़ारों बस्ती है

ख़ुदा जाने ये किस दूरी से पानी ले के आती हैं
ये पानी के घड़े ढोती हुई नारों की बस्ती है

चलो दो चार दिन हम जा के सेवा उन की कर आयें
ये बस्ती बेकसों, बीमार, लाचारों की बस्ती है

हमारा साथ आख़िर कौन देगा शहर में उस के
सभी उस की तरफ़ हैं ये तरफ़दारों की बस्ती है

कहीं से आ नहीं सकती यहाँ ताज़ा हवा हरगिज़
नहीं है कोई दरवाज़ा ये दीवारों की बस्ती है

यहाँ हर रोज़ पढ़ते हैं कई अच्छी बुरी ख़बरें
जहां रहते हैं हम वो एक अख़बारों की बस्ती है

गले कटते हैं आये दिन यहाँ मासूम लोगों के
ये शमशीरों की बस्ती है, ये तलवारों बस्ती है