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क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं / 'ज़ौक़'
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क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं
चश्म-ए-पुर-आब से आईने वज़ू करते हैं
करते इज़हार हैं दर-पर्दा अदावत अपनी
वो मेरे आगे जो तारीफ़-ए-अदू करते हैं
दिल का ये हाल है फट जाए है सौ जाए से और
अगर इक जाए से हम उस को रफ़ू करते हैं
तोडें इक नाले से इस कासा-ए-गर्दूं को मगर
नोश हम इस में कभू दिल का लहू करते हैं
क़द-ए-दिल-जू को तुम्हारे नहीं देखा शायद
सर-कशी इतनी जो सर्व-ए-लब-ए-जू करते हैं