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क़िस्मत सबक पढ़ाए दरे ग़ैब खोल कर / पूजा बंसल

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क़िस्मत सबक पढ़ाए दरे ग़ैब खोल कर
पर्चे नक़ल के चलते है एग्जाम बोल कर

कम हो न पाई तीरगी जो स्याह रात की
सूरज बना रही हूँ दिए खोल खोल कर

सौदा था इक मुनाफ़े का मंज़ूर कर लिया
उल्फ़त के साथ दर्द मिला मुफ़्त तोल कर

मुंसिफ़ जिरह से पहले कलम अपनी तोड़ दे
हासिल भी क्या सफ़ाई मे कुछ लफ़्ज बोल कर

दुनिया के आईने मे ज़रूरी है इक हँसी
पीते है चश्मे आब ज़हर घोल घोल कर