भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़ुर्बत के बावजूद भी क्यूँ फ़ासला हुआ / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
क़ुर्बत के बावजूद भी क्यूँ फ़ासला हुआ
था अपने दरमयां जो ताल्लुक वो क्या हुआ
जिस का हर एक लफ्ज़ मैं सच मानती रही
वो शख्स झूठ बोल के मुझसे जुदा हुआ
मेरे यक़ी के साथ कोई खेलता रहा
लो दिल के साथ फिर से मेरे हादसा हुआ
इक वो के जैसे कोई तिजारत में कामयाब
और एक मैं के जैसे हो कोई ठगा हुआ
रिश्ता ये बोझ ही था जिसे ढो रहे थे हम
अच्छा है ये की आज से रस्ता जुदा हुआ
कच्चे घड़े पे नाज़ किया तुमने किस लिए
सोचा नहीं हैं वक़्त का दरिया चढ़ा हुआ
कड़वी लगेगी बात अगर सच कहा तुम्हें
हमने तो इसलिए है अभी मुँह सिया हुआ