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क़ुर्ब जुज़ दाग़े-जुदाई नही‍ देता कुछ भी / फ़राज़

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क़ुर्ब<ref>सामीप्य</ref> जुज़ <ref>सिवाए</ref>दागे-जुदाई<ref>विरह का दु:ख</ref> नहीं देता कुछ भी
तू नहीं है तो दिखाई नहीं देता कुछ भी

दिल के ज़ख़्मों <ref>घावों</ref>को न रो दोस्त का एहसान <ref>उपकार</ref>समझ
वरना वो दस्ते-हिनाई<ref>मेंहदी वाले हाथ</ref> नहीं देता कुछ भी

क्या इसी ज़हर को त्तिर्याक़<ref>विषहर</ref> समझकर पी लें
नासेहों <ref> उपदेशकों </ref> को तो सुझाई नहीं देता कुछ भी

ऐसा गुम हूँ तेरी यादों के बियाबानों<ref>जंगलों</ref> में
दिल न धड़के तो सुनाई नहीं देता कुछ भी

सोचता हूँ तो हर इक नक़्श<ref>चित्र</ref> में दुनिया आबाद<ref>बसी हुई</ref>
देखता हूँ तो दिखाई नहीं देता कुछ भी

यूसुफ़े-शे’र<ref>काव्य के यूसुफ़(यह संकेत पैग़ंबर यूसुफ़ ,जो अत्याधिक सुंदर और ग़ुलाम थे, जिन्हें मिस्र के बाज़ार में नीलाम किया गया था</ref> को किस मिस्र में लाए हो ‘फ़राज़’
ज़ौक़े-आशुफ़्ता न वाई<ref>अनर्थ भाषी की अभिरुचि</ref> नहीं देता कुछ भी

शब्दार्थ
<references/>