क़ुल्ज़ुम-ए-उल्फ़त में तो तूफ़ान का आलम हुआ / शेर सिंह नाज़ 'देहलवी'
क़ुल्ज़ुम-ए-उल्फ़त में तो तूफ़ान का आलम हुआ
जो सफ़ीना दिल का था दरहम हुआ बरहम हुआ
थामना मुश्किल दिल-ए-मुज़्तर को शाम-ए-ग़म हुआ
याद आते ही किसी की हश्र का आलम हुआ
क्या बताएँ किस तरह गुज़री शब-ए-वादा मिरी
मुंतज़िर आँखें रहीं दिल का अजब आलम हुआ
देखते रहते हैं इस में सारे आलम का ज़ुहूर
आईना दिल का हमारे रश्क-ए-जाम-ए-जम हुआ
वो अदू को साथ लाए हैं मिरे घर देखिए
शर्बत-ए-दीदार के नुस्ख़े में दाख़िल सम हुआ
आप के तीर-ए-नज़र से दिल का बचना है मुहाल
जिस को देखा आँख भर कर बस वही हम-दम हुआ
कि क़दर तस्कीन रंजूर-ए-मोहब्बत को हुई
प्यार से देखा जो उस ने ज़ख़्म को मरहम हुआ
जब उठाया यार ने रू-ए-मुनव्वर से नक़ाब
गिर पड़ा ग़श खा के कोई और कोई बे-दम हुआ
गुलशन-ए-हस्ती में इंसाँ की नहीं कुछ ज़िंदगी
जो हुआ पैदा मिसाल-ए-क़तर-ए-शबनम हुआ
गेसू-ए-पुर-ख़म हुए उन के परेशाँ सोग में
मेरे मरने से दयार-ए-हुस्न में मातम हुआ
बाद मरने के हुआ दुनिया में यूँ मशहूर ‘नाज़’
शान से ताबूत उठा धूम का मातम हुआ