क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से हम को छुड़ा लिया / 'शमीम' करहानी
क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से हम को छुड़ा लिया
अच्छा किया कि आप ने अपना बना लिया
होने दिया न हम ने अँधेरा शब-ए-फिराक़
बुझने लगा चराग़ तो दिल को जला लिया
दुनिया के पास हे कोई तंज़ का जवाब
दीवाना अपने हाल पे ख़ुद मुस्कुरा लिया
क्या बात थी कि ख़ल्वत-ए-ज़ाहिद को देख कर
रिंद-ए-गुनाह-गार ने सर को झुका लिया
चुप हूँ तुम्हारा दर्द-ए-मोहब्बत लिए हुए
सब पूछते हैं तुम ने ज़माने से क्या मिला
ना-क़ाबिल-ए-बयाँ हैं मोहब्बत की लज़्ज़तें
कुछ दिल ही जानता है जो दिल ने मज़ा लिया
रोज़-ए-अज़ल पड़ी थी हज़ारों ही नेमतें
हम ने किसी का दर्द-ए-मोहब्बत उठा लिया
बढ़ने लगी जो तल्ख़ी-ए-ग़म-हा-ए-ज़िन्दगी
थोड़ा सा बादा-ए-ग़म-ए-जानाँ मिला लिया
वाक़िफ़ हीं गिरफ़्त-ए-तसव्वुर से वो ‘शमीम’
जो ये समझ रहे हैं कि दामन छुड़ा लिया