भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काँच कली पहु तोड़थि सजनी गे / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
काँच कली पहु तोड़थि सजनी गे
लए कोरा बैसाय सजनी गे
अधर सुरा सम पीबथि सजनी गे
यौबन देखि लोभाय सजनी गे
लए भुजपास बान्हि सुनू सजनी गे
जखन करथि बरजोरि सजनी गे
तखनुक गति की कहिय सजनी गे
पहु भेल कठिन कठोर सजनी गे
नहि नहि जौं हम भाखिय सजनी गे
तौं राखय मन रोख सजनी गे