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काँच की उतारै चुरी कंचन की धारै प्रेम / रामजी
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काँच की उतारै चुरी कंचन की धारै प्रेम ,
और सोँ पसारै दिया बारै चारि बाती को ।
अँजन लगावै उपपति को बुलावै सैन ,
रूप दरसावै जैसे महामदमाती को ।
रामकवि नारिन मे बैठि के किलोलैँ करै ,
सब ही सोँ बोलै लाज खोलै ठोँकि छाती को ।
खाय खोवा खाँड रहै सब ही सोँ चाँड़ ,
सदा कहिबे को राँड़ कान काटै अहिबाती को ।
रामजी का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।