भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काँटों की फसल / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
क्षमायाचना करती रही-
उन अपराधों के लिए वह;
जो किए ही नहीं थे उसने
और निरन्तर प्रायश्चित भी
उन पापों के लिए करती रही;
जो उसके लिए थे आत्मघाती।
मुस्कानों का मोल चुकाया -
अश्रुओं से सदैव उसने;
ताकि उपद्रव शांत रहें।
इसीलिए आजकल वह है -
तटस्थ और मूक दर्शिका।
आत्मिक उत्थान के लिए
यह महाप्रयाण सार्थक हो संभव है;
किन्तु इस ऐतिहासिक भूल के लिए
समाज उसे पीढ़ियों तक कोसता रहेगा।
क्योंकि उसके बोए हुए काँटों की फसल;
अगली पीढी की बेटियाँ काटेंगी।