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काँपते हुए / रुस्तम
Kavita Kosh से
काँपते हुए वह सोचता था :
मेरा सोचना जब स्वयं काँपता था
तभी उसमें
काँपने का
स्वर
आता था।
यह स्वर — काँपता हुआ — सम्पूर्ण कम्पन को स्वर देता
चलता था।
काँपते हुए वह सोचता था।
फिर वह सोचता था : क्योंकि मैं काँपता था इसीलिए
सोचता था। सोचना कम्पन ही में आकार लेता था। प्रगाढ़
कम्पन ही में मेरा सोचना ज़्यादा घनीभूत होता था।
वह सोचता था और काँपता था।