भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काँवरिए आ रहे हैं / मदन कश्यप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जल्दी-जल्दी ख़ाली कर दो रास्ते
बेटे-बेटियों को घरों में छुपा लो
स्थगित कर दो सभी यात्राएँ
काँवरिए आ रहे हैं !

धरती को पाँवों से
जूतों से बाइकों से
ट्रकों से ट्रैक्टरों से रौंदते हुए
गाँजा-शराब के नशे में धुत्त
फ़िल्मी गीतों की फूहड़ पैरोडियों पर नाचते
काँवरिए आ रहे हैं !

ध्वनि-विस्तारकों की चीख़ और शोर से
ईश्वर को डराते हुए
रास्ते में ग़लती से आ गए बच्चों और
बूढ़ों को कुचलते हुए
राहगीरों के वाहनों में आग लगाते हुए
काँवरिए आ रहे हैं !

कभी नहीं, कभी नहीं देखा होगा
आस्था का ऐसा अश्लील प्रदर्शन
"बोल बम ! बोल बम !
लोकतंत्र का निकला दम !"
बढ़ता जा रहा है शोर
फैलता जा रहा है उन्मादियों का घेर
ईश्वर के लिए

अब मन्दिर के पिछवाड़े छिपकर
रोने की जगह भी नहीं बची है
काँवरिए आ रहे हैं !