भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कांचहि बांस केर गहबर / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कांचहि बांस केर गहबर
आहे सोबरन लागल केबाड़
ताही मे सँ निकलय सुरुजमनि
आहे कोने दाइ उखम डोलाउ
अरघक बेर भेल हे
भिनसरक पहरमे डोमिन बेटी हे
बेटी घनी दउरिया लऽ आउ
अरधक बेर भेल हे
बेटी पियरे कनसुपती लय आउ
पुरुब रंथी ठाढ़ भेल हे
भिनसरक पहरमे बनिआइन बेटी हे
बेटी धनी सुपारी लय आउ
अरघक बेर भेल हे
भिनसरक पहरमे तोहें मालिन बेटी हे
बेटी धनी सतरंगा फुल-हार लय आउ
अरधक बेर भेल हे
भिनसरक पहरमे तोहें ब्राह्मण देव हे
ब्राह्मण पियरे रंग जनउआ लय आउ
अरधक बेर भेल हे