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काका लब्बड़ धोंधों / दिनेश बाबा
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ठंढा सें कॉपै थर थर
जाड़ा से लागै छै डर
जब भी लागै छै सरदी
दूध साथ पीयै हरदी
जब आबै हुनका खांसी
लगै जना होलै फांसी
दम फूलै चढ़तें सीढ़ी
तभियो सोंटै छै बीड़ी
रोजे तेॅ घूमै लेॅ जाय
बिना नहैलेॅ ऐसैॅ खाय
काकी गेलै दिल्ली दूर
असकेल्ले तापै छै घूर
काकी एक बुझौव्वल छै
कहै छै काका औव्वल छै
काका लब्बड़ धों धों धों
करतें रहै छै खों खों खों।