कागज़ी किश्तियाँ ख़्वाबों में चलाने वाले
जाने किस सम्त गए साथ निभाने वाले
जाने उजड़े हुए मंदिर में हवा का झोंका
ऐसे आ जाएँ कभी लौट के आने वाले
नाव कागज़ की है लौट आ न बहुत दूर निकल
रेत पर नदी की तस्वीर बनाने वाले
मुझ से क्या पूछते हो मैंने उन्हें कब देखा
पेड़ की आड़ में थे तीर चलाने वाले
ढूंढ़ कर लाओ कोई हो जो सुलाने वाला
सैकड़ों लोग हैं दुनिया में जगाने वाले
दुनिया वालों ने फ़क़त उस को हवा दी थी निज़ाम
लोग तो घर ही के थे आग लगाने वाले