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कागज पे अब न तेरी जवानी लिखूँगा मैं / अमरेन्द्र
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कागज पे अब न तेरी जवानी लिखूँगा मैं
जलती हुई दुनिया की कहानी लिखूँगा मैं
प्यासी हुई ये रेत ये सूखी हुई नदी
तुम आग हो लिक्खो यहाँ पानी लिखूँगा मैं
औरत तेरे लिए तो नुमाइश की चीज है
वैसे है भवानी ही, भवानी लिखूँगा मैं
तुमको पसंद दोहा बिहारी के तो लिखो
मुझको पसन्द ‘वानी’ है ‘वानी’ लिखूँगा मैं
जिस चीज को तू मान लिया है अजर-अमर
मैं जानता हूँ फानी है फानी लिखूँगा मैं
मिलजुल के लिखें, तुम तो लिखो मुस्कराहटें
ये दाग दिल के, दिल की निशानी लिखूँगा मैं
अमरेन्द्र तुमने जुल्म जो यारों के झेले हैं
जिन्दा रहा तो उसकी कहानी लिखूँगा मैं।