काग़ज़ से निकलकर / ओबायद आकाश / भास्कर चौधुरी
चलो, काग़ज़ से निकल जाएँ
स्टेशन जाएँ
ट्रेन की छत पर चढ़कर
फुटबॉल खेलें
काग़ज़ में रहकर
समस्त पृथ्वी
मानों अपरिचित हो उठी है
और समुद्र के बारे में तो जैसे कुछ मालूम ही नहीं
बाहर निकलकर कितना कुछ किया जा सकता है
मसलन चान्द को रोटी की तरह उलट-पलटकर देखा जा सकता है
उधार लेकर तारों को कंचों की तरह खेला जा सकता है
चलो, ये काग़ज़ की चिन्दी-विन्दी छोड़ें
बल्कि समुद्र की लहरों की सवारी करें, उसकी अतल गहराइयों में डूब जाएँ
लगेगा कि हम विराट जगत के प्राणी हैं
काग़ज़ी संसार में रहकर प्रतिदिन जीवन से पलायन करने की बजाए
चलो गोताखोरों की तरह समुद्रतल में बेरोक-टोक घूमा-फिरा जाए
सपनों में खोए खोए अचानक सारे मैदान
आकर सवार हो गए मेरे काग़ज़ के पन्नों पर
गायें चराईं, फ़सलें काटीं
वे रातभर गाते रहे वीर गाज़ी के गीत
और भिनसारे जब वे हल चलाने जाएँगे
मैं उनके पीछे-पीछे जाऊँगा आपनी काग़ज़ों की दुनिया छोड़कर
इस बीच इस्तेमाल किए काग़ज़ों के प्रति मोह
और एक बार समुद्र, और एक बार बचपन के खेल-मैदानों के लिए प्रेम
जाने कौन मुझे संशयग्रस्त पृथ्वी की ओर इशारा कर जाता है ।
बांग्ला से अँग्रेज़ी में अनुवाद : अशोक कर
अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद : भास्कर चौधुरी