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काटे हैं दिन हयात के लाचार की तरह / शोभा कुक्कल

काटे हैं दिन हयात के लाचार की तरह
कहने को ज़िंदगी है ये गुलज़ार की तरह

मालूम ही न थीं उन्हें कुछ अपनी क़ीमतें
अहल-ए-क़लम बिके यहाँ अख़बार की तरह

तक़रीर उस ने की थी हमारे ख़िलाफ़ जो
हर लफ़्ज़ चुभ रहा है हमें ख़ार की तरह

क्या तुम पे ए'तिबार करें तुम ही कुछ कहो
क़ौल-ओ-क़रार करते हो सरकार की तरह

निकलेगी कैसे कोई मुलाक़ात की सबील
दुनिया खड़ी है राह में दीवार की तरह

दीवार-ओ-दर पे 'कृष्णा' की लीला के नक़्श है
मंदिर है ये तो 'कृष्ण' के दरबार की तरह

ग़ैरत हमें अज़ीज़ है ग़ैरत से हम जिए
पहनी है हम ने सर पे ये दस्तार की तरह

ऐ 'शोभा' देख उन की ज़रा ख़ुश-लिबासियाँ
निकले हैं बन के वो किसी गुलज़ार की तरह।