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काठमांडू अकेले अब काठमांडू को उठा नहीं सकता / कृष्णभूषण बल / सुमन पोखरेल

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काठमांडू अकेले अब काठमांडू को उठा नहीं सकता
काठमांडू अकेले अब पूरे नेपाल का अर्थ नहीं दे सकता।

लाँघना होगा पैरों को अब पहाड़ों के दर्रों को
चलना होगा आँखों को अब समुच्चे पहाड़ों पर
उड़ना होगा निश्चित लक्ष्यों तक अब इस पीढ़ी के पक्षियों को
ज्वालामुखी की तरह फटना होगा अब इस कालखंड की आवाजों को
पकड़ते हुए हाथों से काँटों को अब खड़े रहने के लिए समर्थ होना होगा
काठमांडू को तो अब पहाड़ों पर बिखर जाने के लिए समर्थ होना होगा

एक पत्थर से कोई घर बन नहीं सकता, पत्थरों की परतें होनी चाहिए
एक पोखर का तालाब नहीं होता, कई कुंडों को जम जाना चाहिए
कोई टिटिहरी का आकाश को थामने की कोशिश करने से, थम नहीं जाता आकाश
बरसाती पानी की लहरों से मिटाने की कोशिश करने से, नहीं मिटता बालू तट
पहाड़, मधेश, चोटियाँ और चढ़ाई-उतराई का देश
किसी की बपौती नहीं है, किसी का ठेके पर लेने से भी नहीं होगा
मूल जो है उसे बहना चाहिए, उसका ठहरने से कोई मतलब नहीं होगा
काठमांडू अकेले अब काठमांडू को उठा नहीं सकता
काठमांडू अकेले अब पूरे नेपाल का अर्थ नहीं दे सकता।

मुर्गेघर में कैद होकर भी सुबह का संकेत देती है मुर्गे की बांग
निरर्थक प्रयास पर युग हँसता है,
जलना शुरू कर चुके हुए दिनों को कुहासे से ढकने की कोशिश किया तो
टुँडिखेल के हर कोने पर घोड़ों को छोड़कर उसी तरह से डट ही रहा है इतिहास
टाप की आवाज फैलाते हुए दौड़ रहा घोड़े को
यूँ ही चाबुक मार रहा है एक उपहास
अनिष्ट मानते हैं सपने देखने वाले भी
ऐसे काला घोड़ा और काला आदमी को
लेकिन काठमांडू अपनी छाती पर उठाए हुए है
इतिहास के ऐसे कितने ही लोगों को
तुम्हें क्यों पता नहीं हुआ कि सिर्फ एक रोआँ को केश नहीं कहा जाता
तुम्हें क्यों पता नहीं हुआ कि सिर्फ एक इतिहास का कोई देश नहीं होता
काठमांडू वास्तव में अंदर ही अंदर छटपटा रहे है
काठमांडू वास्तव में अंदर ही अंदर उमस रहा है
मंजुश्री की दूसरी तलवार का निर्माण को ढूंढ रहा है वह
युग के भारी कदमों को अब और ज्यादा उठा नहीं सकता
इसलिए बहने के लिए निकास का रास्ता ढूंढ रहा है वह।

काठमांडू अकेले अब काठमांडू को उठा नहीं सकता
काठमांडू अकेले अब पूरे नेपाल का अर्थ नहीं दे सकता।