आदमी नहीं
काठ का उल्लू बोलता है
जब वह मुँह खोलता है
सच और झूठ नहीं तोलता है
यही उसकी भूल
और खता है
दुनिया को इस बात का पता है
रचनाकाल: ०९-०६-१९७६, मद्रास
आदमी नहीं
काठ का उल्लू बोलता है
जब वह मुँह खोलता है
सच और झूठ नहीं तोलता है
यही उसकी भूल
और खता है
दुनिया को इस बात का पता है
रचनाकाल: ०९-०६-१९७६, मद्रास