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काठ की तलवारें / महाराज कृष्ण सन्तोषी
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हम काठ की तलवारें हैं
हमें डर लगता है
माचिस की छोटी-सी तीली से भी
हम मँच पर कलाकार का साथ
तो दे सकती हैं
पर सड़क पर किसी निहत्थे की रक्षा नहीं कर सकतीं
हम काठ की तलवारें हैं
हमारा अस्तित्व छद्म है
हमारी नियति में कोई युद्ध नहीं
कोई जोख़िम नहीं
किसी का प्यार नहीं
हम रहेंगी हमेशा
मौलिकता से वंचित
हम काठ की तलवारें हैं
हमें आग से ही नहीं
छोटे से चाकू से भी डर लगता है ।