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काठ घन्टियाँ / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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बदली हवा
ज़िन्दगी बदली
क्या ऋतु आयी है।

किसने हाथ मरोड़ा
किसने टँगड़ी मारी है
जेब काट ली किसने
धर मीठी पुचकारी है
बस चुप रहना
बात न करना
जगत हँसाई है।

हाथ मिला
छाती से चिपके
वाणी में रस घोला
अपने महा झूठ का
किसने
रहस कभी क्या खोला?
रिश्तों की छोटी दरार
अब बढ़कर खाई है!

बातें निरी काठ की घन्टी
क्या सुनना क्या गुनना
प्यार महूरत है दो क्षण का
फिर धुनना ही धुनना
अन्तिम सत्य
हाथ जो आया
बस रुसवाई है।