भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कात्यक बदी अमावस आई / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कात्यक बदी अमावस आई दिन था खास दिवाली का
आंख्यां के म्हें आंसू आग्ये देख्या घर जद हाली का
सबी पड़ोसी बच्चां खात्तर खील खिलोने ल्यावें थे
दो बच्चे हाली के बैट्ठै उन की ओर लखावें थे
रात कूच की बची खीचड़ी घोल सीत में खावें थे
दो कुत्ते बैट्ठे मगन हुए उनकी ओर लखावें थे
तीन कटोरे एक बखोरा काम नहीं था थाली का
आंख्यां कै म्हें आंसू आग्ये देख्या घर जद हाली का
कहीं कहीं तो खीर पके कहीं हलुवे की मंहकार ऊठ री
हाली री बहू एक ओड़ ने खड़ी बाजरा कूट री
हाली बैठ्या खाट बिछा कै पांयतांकानी टूट री
हुक्का भर के पीवण लाग्या चिलम तलै तै फूट री
चाकी धोरे डंडूक पड़ा था जर लाग्या एक फाली का
आंख्यां कै म्हें आंसू आग्ये देख्या घर जद हाली का