भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 101 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

14.
एक लता मण्डपमे बैसल जा भय निश्चल
चीन्हल जकाँ ताहि मण्डपके सब ठाँ निरखल
पुछलोपर कोनो बातक उत्तर नहि आनथि
रहथि जेना अनपढ़ छथि ई भाषा नहि जानथि॥

15.
लय सामग्री भोजन लय हम सब हठ कयले
केवल मुनिजन खाद्य मूल फल लय मुख देले।
कहलनि चन्द्रापीड़क ई तनु बड़ वल्लभ अछि
पालन करब जहाँ धरि हमरासँ संभव अछि॥

16.
शिविर चलै लय हठ सुनि कुटिल आँखिसँ देखथि
सबके आने बूझथि नहि परिजन अबलेखथि।
तीन राति दिन हम सब हुनका संग बितओलहुँ
जे किछु फुरल उपाय कयल नहि बाँकी रखलहुँ॥

17.
कहलनि नयन निघाड़ि सकल हम बात जनै छी
चन्द्रापीड़ बियोगे सदिखन स्वयं कनै छी।
किन्तु चलय नहि पयर एतयसँ जनु जकड़ल अछि
चहु दिशि गाछ लता पाथरसँ तनु पकड़ल अछि॥

18.
बल कय जँ लय जायब मम जीवन नहि रहते
जाउ अहाँ सब सहब एतय हम जे विधि कहते।
ई सुनि हम सब चौंकि अनेक विचारो कयलहुँ
परिचारकगण राखि ओतय सेना संग अयलहुँ॥