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कादम्बरी / पृष्ठ 102 / दामोदर झा

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19.
सुनलनि चन्द्रापीड़ बात सब अति तम्भित छथि
की विराग केर मूल पूर्वकृत सब किछु सुमिरथि।
हमरहि जकाँ सकल राजा ओकरो पद पूजय
हमर पूर्ण अधिकार लोक सब ओकरे बूझय॥

20.
हमरासँ नहि भिन्न जनक ओकरा समुझै छथि
सब प्रकार शुकनास अपन जीवने बुझै छथि।
पुनि विराग केर हेतु कोन जे सबके छोड़लक
यौवन सुख तजि नेह तपस्यासँ ई जोड़लक॥

21.
चन्द्रापीड़ सोचि थकला नहि निर्णय भेले
चिन्तित मानस कहुना उठि पटगृहमे गेले।
कादम्बरी जतय वैशम्पायनो ततहि अछि
ई बुझि सोचथि आब ओतय जातब संभव अछि॥

22.
वैशम्पायनके अनबालय हम छुट्टी लेबे
एक पन्थ दुइ काज प्रियाके दरसन देबे।
वैशम्पायन एहन विरागे बड़ दुख देलक
जयबा लय दय मार्ग हमर उपकारो कयलक॥

23.
ई सोचैत कुमार अपन देहस्थिति कयलनि
राजागण संग बैसल ओकरे बात चलओलनि
सभा विसर्जित भेल साँझ दीपक जन लेसल
भय तैयार रहै लय ई सबके ओदशल।