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कादम्बरी / पृष्ठ 103 / दामोदर झा

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24.
राति खाय किछ सब सूतल युवराजो सुतला
जगले लैत करौट निशीथक बादे उठला।
चलि देलनि इन्द्रायुधपर चढ़ि सब संग लागल
चलबा कालक ढोल ढाक बाजा नहि बाजल॥

25.
सब छल शोक समाज, सैन्यमे नहि कल रव छल
कहुना देखल बाट शून्य मन सभक चलब छल।
पहुँचल जा उज्जैन द्वारपर जन सब कहलनि
राजा रानी मन्त्रिक घर छथि से ई जनलनि॥

26.
लगले मोड़ल अश्व भवन शुकनासक गेले
द्वारहिसँ कानल मनोरमा केर रव सुनले।
हाय पुत्र वैशम्पायन, हम केहन अभागलि
थोड़बो जँ आभास होइत जइतहु संग लागलि॥

27.
शुकनासो नोरक धारे दुहु गाल भिजाबथि
राजा रानी धैरज दय हुनका समुझाबथि।
चन्द्रापीड़ ततय जा सभक चरण रज लयक’
भूमि उपर बैसला दुःखी शिर नीचा कयक’॥

28.
कहल भूप युवराज, अहीं किछु कारण कहबे
जे किछ झगड़ा भेल साफ कहु नहि छल गहबे।
दोष अही केर हयल ओकर वनवास करैमे
लय बैराग्य बन्धु जननी जनकहुँ दुख दैमे॥