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कादम्बरी / पृष्ठ 104 / दामोदर झा

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29.
लागल कण्ठ बुकौर हिचकि युवराज कहल ई
नहि अछि झगड़ा भेल ने हम कारणो बुझल ई।
हमरहि जकाँ भुवनकेर राजा ओकरहु मानय
हमर भुजाश्रित ककर शक्ति ओकरा अपमानय॥

30.
कहल उचकि शुकनास भूप, की कर्म करै छी
युवराजक कहि दोष अहाँ अपधर्म चरै छी।
जँ विधुमण्डलसँ अंगारक वर्षा झरते
वैशम्पायनहुक कुमार तँ अनहित करते॥

31.
ओएह दुष्ट अछि देब पितर माता पितु घाती
परलोकहुके नाशि भेल अछि नरकक पाती।
सूगा जकाँ पढ़ओलहु जे ई नर फल पायत
कयलक आश विनाश आब शुकयोनिहि जायत॥

32.
एहि दुष्कर्मे दुर्जन अपटी खेतहिं मरते
जवत जीवित रहत मनक दुख जरबे करते।
कहल कुमर धय चरा छमा करु कोप सम्हारू
कयलक अनुचित बालक अछि से हृदय बिचारू॥

33.
जनक बनओलनि दोषी प्रायश्चित करब हम
शत योजन पुनि जाय ततयसँ धय आनब हम।
ओकरा बिनु अनने हम उज्जयिनी नहि आयब
जँ कदापि नहि भेटत हमहूँ यमपुर जायब॥