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कादम्बरी / पृष्ठ 105 / दामोदर झा

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34.
कहल बिलखि शुकनास वज्र सन कथा कहै छी
अहूँ कहै छी जायब एकल व्यथा सहै छी।
मनोरमा धय हाथ कहथि बौआ, कथ मानू
पाबि अहाँके पुत्रवती रहबे से जानू॥

35.
चारू मातु पिता केर आब अही जीवन धन
अहूँ एतयसँ जायब की प्राणक अवलम्बन।
कतबो सब क्यो कहल कुमर तैओ नहि मानल
भूप मनहिं पछताथि एकर जे दोष बखानल॥

36.
मन्त्री राजा युगल विचारल ई नहि मानत
जाइत अछितँ जाय आन ओकरा नहि आनत।
देलनि भूप निदेश जाउ जल्दी घुरि आयब
पकड़ि ताहि लय आयब ततय नहि समय बितायब॥

37.
अहूँ बिना हम सब जीवन रहिते भय रहबे
दशा बिचारब हमरा सभक विलम्ब न गहबे।
आज्ञा पाबि पिताक सभक पद शीश नमायल
जहिना छला तुरत युवराज द्वारपर आयल॥

38.
तेज तेज असबार पाँच सयके संग लेले
लगले चढ़ि इन्द्रायुधपर मारग चलि देले।
तीन वर्षपर छला बलाहक निजपुर आयल
अपना घर नहि जाय कुमर संग पुनि बहरायल॥