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कादम्बरी / पृष्ठ 107 / दामोदर झा

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44.
हर्षित भेल तरलिकाके ओ ओतय पठओती
चित्ररथहुके सूचित कय सब साज सजओती।
वैशम्पायन सब सबार बरियाती जायत
देवलोक केर ठाठ वाठ मनुजो लखि पायत॥

45.
चलथु महाश्वेता हमरा लय आगू बढले
दुलहा बनि हम चलब मन्द इन्द्रायुध चढ़ले।
फाटकपर मदलेखा सब मिलि परिछनि करते
हर्षे होइत विभोर पत्रलेखा पद धरते॥

46.
कन्यादान चित्ररथ अपनहि हाथे करता
चिन्ता भेल छलैनि जते से सकल बिसरता।
महुअक दिन ओ राति चतुर्थी दिन धरि हयते
ताहि रातिमे सबटा व्रत बन्धन हँटि जयते॥

47.
सूतब एक पलंग हमहुँ अपरुब सुख पायब
घोघट हुनकर टारब सबटा लाज हँटायब।
सब बाधासँ मुक्त बिहुँसि हमरासँ बजती
अयबा केर विलम्ब दोष केर रोषो तजती॥

48.
हुनक मृदुल तनु आलिंगने बहुत सुख पयबे
पीबि अधर मधु जनु धृत देहे सुरपुर जयबे
कहब महाश्वेतासँ मदलेखाके दैलय
वैशम्पायनहुक लगले विवाह करबै लय॥