भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 109 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

54.
राति दिवस केर भान कतय केबल पथ जानथि
विद्युल्लता प्रकाश दैछ ई भाग्य बखानथि।
अन्धकार पथ घोर नदी पथ बाढ़ि भसै छल
मन मरोड़ि तरु छाह गहथि जँ घन बरिसै छल॥

55.
भोरे सब जन अश्व हेलाबथि नदी तरै लय
त्रिते एँड़ प्रहार शीघ्र पथ पार करै लय।
 भीजल तीतल चलथि शरीरक वस्त्रो सड़लनि
नहि ससुराबथि डँड़ाडोरि डाँड हिंमे गड़लनि॥

56.
कतबो बाधय मेघ हारि तैओ नहि मानथि
घोर विपिन घनघोर समय केवल पथ जानथि।
बुन्द छेक किछु भेल कुमर आगू बढ़िते छथि
पाछू सब सबार पाथर मारग चढ़िते छथि॥

57.
देखल अश्व समूह मेघनादक संग आबय
छलय पत्रलेखा संग गेल ततय पहुँचाबय।
उतरि अश्वसँ युवराजक पद वन्दन कयलनि
वैशम्पायन केर वृत्त ई लगले पुछलनि॥

58.
आयल नहि ओ ततहि रहल ओहि ठाँ भेटल अछि
कतय रहय की काज करय निज देह कुशल अछि।
मेघनाद भय दीन कहल हम किछु नहि जनलहुँ
वैशम्पायनसँ मिलि ऐब अहाँ ई गुनलहुँ॥