कादम्बरी / पृष्ठ 110 / दामोदर झा
59.
बीस कोस अच्छोद सरोवर तट बाँकी छल
कहल पत्रलेखा केयूरक दुहु मिलि निश्छल।
आब मार्ग अछि सरल कुशलसँ हम चल जायब
जाउ अहाँ उज्जैन कुमरके शीघ्र पठायब॥
60.
ते हम अयलहुँ पलटि सरोवर तट बिनु गेने
जे आज्ञा दी आब करब सब बिनु सुसतेने।
कहलनि कुमर जाउ उज्जयिनी सावधान रहि
सबके दय सन्तोष सम्हारब हमर कुशल कहि॥
61.
मेघनाद तँ गेला कुमर उत्तर दिशि धाबथि
कौखन भोजन करथि मार्गमे जे किछ पाबथि।
चलथि राति-दिन कतहु बीचमे नहि सुसतयलनि
जहिना तहिना चलि अच्छोद सरोवर पओलनि॥
62.
कुमर बलाहक संग सैनिक तट वनमे पसरल
वैशम्पायनके ताकय देहस्थिति बिसरल।
सकल लता मण्डप देखल गिरि गुहा विटपतर
झाँखुड़ सबमे आँखि पाति ताकय भय तत्पर॥
63.
ताकि हेरि सब थाकल कतहु चेन्ह नहि पायल
घुरि घुरि सब अच्छोद सरोवर तटमे आयल।
कहल कुमर विश्राम करू सब देह सम्हारू
भीजल अछि सब वस्त्र रौदमे ताहि पसारू॥