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कादम्बरी / पृष्ठ 118 / दामोदर झा

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1.
चन्द्रापीड़क मित्र नाश कय अति चिन्तित भय गेले
ततय महाश्वेता निशि वासर सोचथि लज्जित भेले।
अओता राजकुमार कथा सबटा तँ सुनबै करता
की कहि धैर्य देब हुनका ओ हमरो धैरज हरता॥

2.
कादम्बरी एतय अवसरपर ताहि दिवस जँ रहितय
हमतँ रहब अवाक लाजसँ ओ हुनका समुझबितय।
एतबा सोचि तरलिका मुहसँ ई संवाद पठओलनि
आउ अहाँ जल्दी उत्कण्ठित मन अछि बात बनओलनि॥

3.
कहि संवाद तरलिका गेलै ई उल्लासित भेले
छली बहाना तकिते भेटलनि मारग जयबा लेले।
पहिनहि कहने छलनि पत्रलेखा केयूरक हिनका
चन्द्रापीड़ सभय ई कहलनि मोने हेतनि तनिका॥