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कादम्बरी / पृष्ठ 11 / दामोदर झा

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50.
तावत् सेनापति परिजनधृत पत्रासन पर बैसल
भील युवक एक ओकरा सुख लय पम्पासरमे पैसल।
सारुक-सहित मृणाल पुड़ैनिक दल जल अर्पण कयले
खाय पीबि विश्रान्त सभक सङ ओ निज मारग लेले॥

51.
एकटा बूढ़ शिकार न पओने छल बैसल रहि गेले
लम्बा चौड़ा पुरुष भयंकर आँखि वक्ष पर देले।
यद्यपि दुरारोह ई तरु छल बेरि बेरि पिछड़ै छल
मांसलोभ उन्मत भेल कहुना पुनि ससरि चढ़ै छल॥

52.
लतोसहाये कहुना पहुँचल तिनफेंड़ा केर ऊपर
देखि हमहुँ डरसँ कँपैत पैसल जनकक पाँखिक तर।
ओ पापी शाखापर जा जा नीड़निवासी खगकें
नीचा मारि खसाबय पथिक बनाबय यमपुर मगके॥

53.
डारि सबहिं पर थल सम चलिते पहुँचल हमरो कोटर
अबिते वामा हाथ पसारल जहिना करिया विषधर।
पकड़ि पिताके घाड़ तोड़ि फेकल हुनका धरती पर
हुनके पाँखिक तरमे सिकुड़ल हमहूँ काँपी थर-थर॥

54.
छोट छलहुँ ओ आयु शेष छल ते ओकरा कर छटल
पातक ढेरी पर जा खसलहुँ प्यर शीश नहि टटल।
जनक मरणकेर शोक न कनिओ आन बात नहि सूझय
जन्मजात भय काँपि बिचारल ओ हमरा जनि बूझय॥