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कादम्बरी / पृष्ठ 121 / दामोदर झा

14.
कादम्बरी हँसल मुख कहलनि तों बताहि बेसुधि छे
अछि कल्याण हमर की कयने बुझबामे अक्षम छें।
जे जीबै अछि तकरे माता पिता सखी बान्धव छै
मुइला उत्तर दुख सुख तकर विलोकन नहि संभव छै॥

15.
हमर आब मरणे जीवन अछि जीवन पाप मरन अछि
सुख सौभाग्य विहीन देह यावत अछि दुखक भवन अछि।
जनिकालय हम कुल मर्यादा मातु पिता अपमानल
कन्या भावक लज्जा तजलहुँ अपवादो नहि जानल॥

16.
सैह आबि हमरहि लय मुइला से प्रत्यक्ष लखै छी
तोरा कथे कृतघ्न नीच हम की बुझि देह रखै छी
नहि जीवित मुइलो तँ भेटला हिनके संग हम जायब
आब चिताकेर अग्नि बीच हम अपन विवाह रचायब॥

17.
रोदन रवमे हमर विवाहक तो सब मंगल गयबे
स्वर्ग बिदा क’ दुरागमन बुझि सब निज घर घुरि जयबे।
जँ हमरापर नेह करै छे तँ एतबा तो करिहें
हमर जनक जननी सम्हारिहे अपनहुँ नहि मरि जैहे॥

18.
बहुत सजायल हमर भवन अछि तो ताहीमे रहिहे
मकड़ा जेना जाल नहि लगबय तेना साफ कय रखिहे।
हमर सखी सब टुगर नहि हो तहिना साज सजबिहे
बीणा हमर बहुत सुन्दर अछि अपनहिं ताहि बजबिहे॥