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कादम्बरी / पृष्ठ 123 / दामोदर झा

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24.
भरि लोचन आनन छवि पीबथि निज तनु सुधि बिसरायल
कादम्बरी परस अमृतहिसँ जनु पुनि जीवन आयल।
चन्द्रापीड़ देह पुलकित भय मुखहिं तेज बहरायल
किछु कहितो किछु नभमे उड़ि जा ताही ठाँ मरड़ायल॥

25.
ताहि तेजसँ गिरि काननमे जेना इजोड़या भेले
शीतल परस पाबि कन्या गण सब क्यो काँप्य लगले।
कहलक तेज महाश्वेता बेटी, हम पहिनहि कहलहुँ
भेट हयत प्रियतमसँ अहूँ हमर वचनंिपर रहलहुँ॥

26.
पुनि कहैत छी पुण्डरीक तनु हमरा लग अछि राखल
बिगड़ल नहि जेहने छल तेहने हमर अमृतसँ माखल।
चन्द्रापीड़ शरीर हमर ई अहाँ दुहू लग रहते
कादम्बरी परस अमृतहिसँ आप्लावित नहि सड़ते॥

27.
ई शापान्त दिवस धरि सूतल जकाँ रहत नहि फेकब
नहि वैश्वानर माँझ जरायब जिविते सन अवलेखब।
आसंगम राखब हमरा वचनहुँ पर प्रत्यय लायब
दूनू सखी तपस्या एहि ठाँ कय किछ समय बितायब॥

28.
एतबा कहि ओ उड़ल गगनमे तेज सबहिके सूझल
उपरे घाड़े रहल अचम्भित की ई छल नहि बूझल।
सुनल पत्रलेखा तेजक भाषणे होशमे आयल
अकचकाय चारू दिशि देखय सब किछ जेना हेरायल॥