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कादम्बरी / पृष्ठ 128 / दामोदर झा

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49.
हनका सकल निवेदनक हम प्रतीकार करबायब
शाप मुक्त भेलापर हिनका लय अहाँक लग आयब।
एतबा कहि नभ उड़ल कपिंजल उपरे घाड़ लखय सब
अजगुत वृत्त बिचारि परस्पर चौंकल जकाँ कहय सब॥

50.
कादम्बरी महाश्वेताकेर हाथ पकड़िक कहलनि
हमरा दुहुक ललाट विधाता एके आखर लिखलनि।
आब अहाँके सखी कहैमे नहि संकोच लगैए
अहाँ उपर जे खसल वज्र से हमरहुँ अनुभव होइए॥

51.
ई कहि उठि मदलेखा सहित तरलिकाके संग लेले
चन्द्रापीड़क तन अति आदर कोमल हाथ उठओले।
वर्षा रौद हबासँ रक्षित रम्य गुफामे अनलनि
ततय फटिक सुन्दर वेदी कय मृदुल सेजपर रखलनि॥

52.
वर्षा ऋतु केर राति भयंकर छन छन बिजुली चमकय
वज्र तड़ातड़ कड़कै छल घन मूसर धारे झमकय।
कहुना सब क्यो कालराति सन बैसल राति बितओलक
दिन चढ़लोपर सब समाज दतमनिजोटा नहि कयलक॥

53.
कादम्बरी उठलि अविकल मनसरमे डूबि नहयलनि
उज्जर वस्त्र पहिरि सब टा शृंगारक वेष हटओलनि।
प्रोषिपतिका जकाँ केशके जुट्टी एक बनओलनि
ब्रह्मचारिणी वेषे गहना चूड़ी मात्र पहिरलनि॥