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कादम्बरी / पृष्ठ 130 / दामोदर झा

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59.
कादम्बरी स्नान कय पहिने शबके पूजा कयलनि
तखन बलाहकके बजाय किछु उत्साहित भय कहलनि।
आब भरोस भेल अछि ई कहियो धरि जीबे करता
अपन मधुर व्यवहारे सम्बन्धीक कष्ट सब हरता॥

60.
सबके कहियौ धैरज धय निज निज देहस्थिति करते
बेराबेरी एतय आबिक पहरा करिते रहते।
जे आदेश स्वामिनीकेर ई कहि सेनापति गेले
जंगलसँ फूल मूल आनिक सब जन भोजन कयल॥

61.
कादम्बरी महाश्वेता लग जा फल-मूल अहारथि
बनलि तापसी निशि दिन चन्द्रापीड़ चरा लग निबसथि।
सातम दिन मदलेखाके निज बापक भवन पठओलनि
निश्छल भाव भेल जे किछु हुनका सबटा कहबओलनि॥

62.
इहो कहलथिन ओ सब आबि एतय हमरा नहि देखथि
बेटी छलि मरि गेलि आब ई अपना मन अवलेखथि।
हेमकूटपर जा मदलेखा विवरण सकल सुनायल
ओ सब जे सन्देश कहलथिन से मुनि पुनि घुरि आयल॥

63.
आबि कहल कादम्बरीक लग ओ सब मोद लहै छथि
जननी जनक परम उल्लासे धैरज धरय कहै छथि।
कहलनि बेटी, बड़ अभिलाषा छल जमायके देखब
हुनका संग अहाँके लखि हम स्वर्गक सुख अवलेखब॥