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कादम्बरी / पृष्ठ 132 / दामोदर झा

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69.
हम विश्वासपात्र केर हाथे लिखि निज पत्र पठायब
जे सब भेल एतय दुर्घटना यथातथ्य कहबायब।
एतबा कहि अपना डेरामे त्वरितकके बजबओलनि
बालभावसँ कुमरक सेवक ताहि बुझाके कहलनि॥

70.
जाउ अहाँ उज्जैन भूपके सब कहि धैरज देबनि
हमरो पत्रक पढ़लास विश्वास करै लय कहबनि।
सिर धय से आज्ञा त्वरितक लगले घोड़ापर चढ़ले
संगमे लय दस घोड़सबार उज्जैन नगर दिशि बढ़ले॥

71.
तेज चालिसँ चलल राति दिन पथमे नहि सुसतायल
गनले प्रस्थानक सँ ई उज्जैन नगरमे आयल।
तारपीड़ नृपतिके नामि त्वरितक सब विवरण कहलक
देखल सुनल जते अजगुत छल ओकर बुद्धि जे गहलक॥

72.
सुनिते हाहाकार मचल जे सुनय ततहिसँ धाबय
माउगि सब रनिबासक मारग पुरुष भूप दिशि आबय।
प्रजा सकल बपहारि कटै छल उजड़ल नगर बुझै छल
दुधमूहाँ बच्चा खसलो माताके नहि सूझै छल॥

73.
सकल कथा शुकनासो सुनलनि दौड़ि भूप लग गेले
संज्ञाहीन नृपतिके देखल स्वयं हतप्रभ भेले।
मनोरमा गेली किछु बात अकानि बिलासबती घर
देखि परिस्थिति छलि अबाक नहि साफ कहए क्यो उत्तर॥