भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 134 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

79.
घोड़ा बनल कपिंजल मुनि ई बातो अजमाओल अछि
इन्द्रायुध केर गुासँ भूषित कतय अश्व पाओल अछि।
नभ वाणी अछि सत्य, शाप बितला पर जीबे करता
लोकपाल रहितहुँ गौरव दय शीश पयर पर धरता॥

80.
सुनलनि भूप कुमारक हृदयक भंग हिनक मन जाननि
किन्तु शरीर स्वस्थ सन छनि ई बात हृदय नहि माननि।
त्वरितकके किछ डाँटि पुछलथिन की सब तो देखने छे
देहस्थितिक विषय मनमे तो कोन बात रखने छे॥

81.
हाथ जोड़ि ओ कहल देव पन्द्रह दिन तक हम देखल
जेहने डग डग पहिने छल तेहने अछि ई अवलेखल।
राति दिवस गन्धर्व राज पुत्री मशान जगबै छथि
तेल फुलेल लगाय नहाबथि आभूषण सजबै छथि॥

82.
गरमाला पहिराय धूप दीपहुसँ पूजा करिते
बूझि देवता हिनका सेबथि निज वपु कर्म बिसरिते।
निज दल पहरा मात्र करै छनि रहय समीपक देशे
करय अपन परिचर्या सब कादम्बरीक आदेशे॥

83.
एतबा सुनि राजा मन्त्रीके कहलनि सबटा सुनलहुँ
जायब ओतहि निवास करब हमहूँ ई मनमे ठनलहुँ।
वाहन वाहन कहते राजा झट घरसँ बहरयला
पाछूसँ सब जन अबैत छल सिंहद्वारपर अयला॥