कादम्बरी / पृष्ठ 136 / दामोदर झा
89.
हर्ष शोक आश्चर्य विमिश्रित नीर सभक दृग चूबय
पैदल सब चलि देल नृपति संग वाहनके के छबय।
सुनल महाश्वेता चन्द्रापीड़क गुरु जन केर आगम
अपना गुफा समायल मन छल लज्जा शोकक संगम॥
90.
देखल कादम्बरी दूरमे हिनका सबके अबिते
मूर्छित खसलि कुमर चराक लग देहक सुधि बिसरबिते।
अयला तारापीड़ भूप रानी केर पाँखड़ धयने
मनोरमा केर पाछू शुकनासो निज आँखि गड़यने॥
91.
देखल सूतल जकाँ कुमरके इन्द्रिय वृत्ति हँटल छल
हाथ पयर कमले सन विधु सन शोभित मुखमण्डल छल।
कय चीत्कार विलासवती गरदनि कुमारकेर धयलनि
मुखमे मुख छातीमे छाती सगर देह लेपटयलनि॥
92.
राजा कहुना धैरज धय हुनका किछु दूर हटओलनि
लय चन्द्रापीड़क शरीर पहिनहिं सन शय्या रखलनि।
कहलनि जनिकर अमृत परससँ एहुना तनु रखने छथि
मूर्छित छथि पुतोहु से देखू जहिखन सँ देखने छथि॥
93.
चौंकि विलासवती लग गेली विवश देह छल पसरल
झट उठाय कोरामे लेलनि सगरे तनु कर ससरल।
चन्द्रवदन कादम्बरीक लखि शोक न हृदय समायल
मुखमे गाल सटाय सिसकि हुकरल रवमे बहरायल॥