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कादम्बरी / पृष्ठ 137 / दामोदर झा

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94.
कानथि बिलखि-बिलखि रानी बेटी, तोही पक्षक छह
अमृतक परसे चन्द्रापीड़क तो शरीर रक्षक छह।
प्राणनाथकेर नाम मन्त्रयुत ओहने परसो गुनलनि
कादम्बरी होशमे अयली लाजे लोचन मुनलनि॥

95.
मदलेखा हुनका कोरासँ धय भरि पाँज उठओलक
हाथ पकड़ि लय सासु ससूरक चरण प्रणाम करओलक।
मनोरमा शुकनास दुहुक चरणहुँ पर मस्तक राखल
सतत रहय अहिबात सुभग आशीष सकल जन भाषल॥

96.
तारापीड़ कहल बेटी, तोही हिनकर सब करहुन
परिचर्या पहिनहि सन शीतल परसे देह जोगबहुन।
हम सब दरसन मात्रक भूखल छलहुँ एतय से पयलहुँ
तोर प्रभावे शोक हर्ष अजगुतमे आबि समयलहुँ॥

97.
कहलनि मन्त्री हमर पुतोहु कतय ओ तप साधै छथि
जे पुत्रक पहिलुक शरीर लय शिवके आराधै छथि।
दौड़ि महाश्वेताक तरलिका हाथ पकड़ झट अनलक
मनोरमा शुकनास चरणपर आनि प्रणाम करओलक॥

98.
भय निरलज्ज महाश्वेता कय कय विलाप ई कहलनि
से राक्षसी हमहिं छी जे अनेक पुत्रके खयलनि।
मनोरमा शुकनासो हिचकी कनितो धैरज बन्हलनि
हमर कर्म ओ हुनक शाप अपराधी अछि, ई कहलनि॥