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कादम्बरी / पृष्ठ 13 / दामोदर झा

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60.
हमरा देखि दयाद्र त मन भय लगले हाथ उठओलनि।
‘क्यो पापी कुलायसँ एकरा खसा देल’ से कहलनि।
सर तटमे जल-बिन्दु पिअओलनि दल छयामे रखलनि
पुनि नहाय सन्ध्यादिक कयलनि पितु आश्रम लय अनलनि॥

61.
आश्रम मुखरित वेद पाठसँ छल मुनि गण वटु जनके
कतहु यज्ञ धूआँक सुगन्धो मुग्ध करै छल मनके।
शास्त्रक गूढ़ रहस्य ज्ञान केर कतहु होअय व्याख्यानो
कतहु गृही मुनि जन केर घरमे अतिथिक हो सन्मानो॥

62.
सब ऋतु फूल-फले नमरल तरु जनु नन्दन भूगत छल
घोर विपिन तजि एतय बाघ मृग अहि नकुलो संगल छल।
आश्रम बीच मनोहर रक्ताशोशक तरु तर थल छल
ततय सभा परम तपस्वी मुनि जन सब बैसल छल॥

63.
तकरा बीच छला मुनि जनवृत ओ जाबालि तपोधन
ब्रह्मो सिखने हेता ज्ञान हिनकहिसँ देखि कहय मन।
सब टा केश दूध सन उज्जर मुखक तेज पसरइ छल
तेजक लेल शरीरक आकृति साफ न अबगत होइ छल॥

64.
हुनका लखिते जीवन-आशा पुनि थिर पएर जमाओल
उदधि बीच डूबैत कतहुसँ जनु जहाजके पाओल।
ओ हारीत मोहि कर युग लय हुनि पद वन्दन कयलनि,
नीड़च्युत अनाथ शुक शिशु छल एकरा आनल कहलनि॥