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कादम्बरी / पृष्ठ 142 / दामोदर झा

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9.
हमहूँ कहलहुँ कानि अहूँ तँ हमरे कारण
धयलहुँ अश्व शरीर भेल जप योग निवारण।
जाहि बदनमे मन्त्राक्षर फुरफुर करैत छल
ताही मध्य लगाम कड़ी कड़ कड़ लड़ैत छल॥

10.
जतय मनोहर वपु यज्ञोपवीत बिलसै छल
ताही ठाम जीन केर रस्सा सतत कसै छल।
जे कोमल तनु पुष्प् लता चोटहुँ दुख पाबय
ताहीपर सबार कोड़ा कर तानि लगाबय॥

11.
ई सब बकितो कानि खीजि उर धैरज अनलहुँ
क्रोधित छथि वा सदय पिताजी ई हम पुछलहुँ।
क्हल कपिंजल जखन छलहुँ हम अश्व देहमे
योग चक्षु सँ देखि छला ओ विकल नेहमे॥

12.
आरम्भल आयुष्कर यज्ञ अहाँ लय तहिखन
हमहूँ यज्ञ काजमे लगलहुँ पहुँचल जहिखन।
माता लक्ष्मी सतत अहाँ लय नीर बहाबथि
यज्ञ सुफल हयबा लय सब सामान गहाबथि॥

13.
आइ अहाँ लग कहलनि जनक धरा उतरै लय
ऋषि जाबालिक आश्रममे निरदेस करै लय।
क्हलनि पुत्र अहाँक दोष नहि अछि मरबामे
हमरे आलस दोषी अछि रक्षा करबामे॥